"भैया, डर और भूख भला किसे हिम्मत नहीं देते?"
ये शब्द न तो किसी महान दार्शनिक के हैं और न ही किसी कालजयी उपन्यास के किसी महान पात्र के. बल्कि ये तो वह मूल मंत्र है जिसने बलरामपुर के राघोराम को रोहतक से अपने गांव तक चले जाने का संबल दिया और 750 किमी की यात्रा उन्होंने पांच दिनों में अपनी पत्नी के साथ साइकिल से पूरी की.
राघोराम उन्हीं हज़ारों लोगों में से एक हैं जिन्हें कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते देशभर में अचानक लागू किए लॉकडाउन यानी बंदी के कारण हरियाणा के रोहतक से यूपी के बलरामपुर लौटना पड़ा.
राघोराम कहते हैं कि कोरोना वायरस और आगे अपने अस्तित्व संकट के भय ने उन्हें इतनी ताक़त दी कि वो अपनी मंज़िल तक पहुंच सके.राघोराम बताते हैं, "हम जिस कंपनी में काम करते थे, वह कुछ दिन पहले ही बंद कर दी गई थी. हमने ठेकेदार को फ़ोन किया तो वो बोला कि हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते. मकान मालिक ने कहा कि रुकोगे तो किराया लगेगा. रोहतक में रह रहे हमारे जानने वाले कुछ लोग अपने घरों को निकल रहे थे तो हमने भी सोचा कि यहां से जाने में ही भलाई है. घर-गांव पहुंच जाएंगे तो कम से कम भूख से तो नहीं मरेंगे. वहां कुछ न कुछ इंतज़ाम हो ही जाएगा."