क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास लॉकडाउन ही एकमात्र रास्ता था? -नज़रिया

इस समय जब भारत कोरोना वायरस जैसे संकट से जूझ रहा है तो ये सवाल काफ़ी बेमानी है कि क्या लॉकडाउन किया जाना ही एक मात्र विकल्प था.


लेकिन ये सवाल पूछा जा रहा है. और इसका जवाब आसान है - हाँ, लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प था.


मगर लॉकडाउन के कुछ दिनों के अंदर ही जिस तरह की अफ़रा-तफ़री का माहौल देखा गया. उसके बाद एक सवाल खड़ा होता है कि क्या अचानक से पूरी तरह लॉकडाउन किया जाना ही एकमात्र विकल्प था?


क्या हम पूर्ण लॉकडाउन का एलान करने से पहले प्रवासियों खासकर रोज कमाने खाने वाले कामगारों को कुछ दिनों पहले अग्रिम नोटिस नहीं दे सकते थे जिससे वे इच्छा होने पर गांव जाने की व्यवस्था कर पाते.


और क्या सरकार को उन सभी कदमों और योजनाओं के बारे में घोषणा नहीं करनी चाहिए थी जिसके तहत सरकार ने लॉकडाउन के दौरान दिहाड़ी मजदूरों की रोजाना की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में काम करती?


कोई ये तर्क दे सकता है कि अगर लोगों को उनके घरों को जाने की इजाज़त दी जाती तो लॉकडाउन का मकसद ही ख़त्म हो सकता था क्योंकि ऐसा होने पर ज़्यादा से ज़्यादा लोग तुरंत अपने गांव जाने की कोशिश करते.


अपने घर जाने की जल्दबाजी में वे भीड़ भरी बसों और ट्रेनों में सफर करते. लेकिन संपूर्ण लॉकडाउन के एलान के बाद हमने जो देखा वो इससे भी बुरा था.


लाखों ग़रीब लोग अपने गाँव तक जाने वाले वाहन मिलने की उम्मीद में पैदल चलते रहे.


इस कोशिश में कुछ मजदूरों ने पानी की टंकियों और दूध की टंकियों में भी सवारी की.


अगर सरकार इन प्रवासी मजदूरों के लिए शहर में ही रहने और खाने की कोई व्यवस्था कर देती तो ये उम्मीद होती कि कई मजदूर घर जाने के लिए इतने परेशान न होते और स्थिति इतनी ख़राब न होती.